गोस्वामी तुलसी दास का जीवन परिचय , जीवनी , बायोग्राफ़ि |

goswami tulsidas bigraphy in hindi-तुलसीदास जी की जीवनी हिन्दी मे |



तो हेलो दोस्तो एक बार फिर से स्वागत है आपका इस ब्लॉगिंग साइट पर जिस मे आपको मोटिवेशन के अलावा बायोग्राफ़ि , टिप्स, और भी खास जान करी यो के बारे मे बताया जाता है तो आज मे आपको बताने वाला हु हिन्दी साहित्य के महान कवि रह चुके गोस्वामी तुलसी दास के जीवन के बारे मे उनकी पूरी जीवनी के बारे मे जानकारी जेसे की उनके जीवन - मरण शिक्षा , और भी कई जानकारी के साथ हम शुरुआत करने वाले है तो जुड़े रहिए अंत तक |


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तुलसीदास की बायोग्राफ़ि हिन्दी मे |

 हिन्दी साहित्य जगत मे बहुत से ऐसे कवि लेखक हो चुके है जिन के टैलंट से है आज भी जेसे मानो तोपों की सलामी देने का मन करता है लेकिन आज हम बात करने वाले  है उनमे से ही एक कवि या फिर महान भक्त गोस्वामी तुलसी दास के बारे मे तो आइये पहले इनके बारे मे कुछ खास जान करियो को देखते है -


जन्म - 1511 ई॰( सम्वत 1568 वि॰)


जन्म स्थान - सोरो शुकरक्षेत्र कासगंज , उत्तर प्रदेश भारत |


म्रत्यु - 1623 ई॰ (संवत 1680 वि॰) 


म्रत्यु कहा हुई -  वाराणसी |


इन के गुरु का मान - नर हरी दास 


दर्शन - वेष्णव


खिताब / सम्मान - गोस्वामी / अभिनववाल्मिकी  और भी कई सारे |


धर्म - हिन्दू 


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आइये इनके बारे मे और जाने -


गोस्वामी तुलसीदास के जन्म के बारे मे -

गोस्वामी तुलसीदास का जन्म भी कई सारी अड़चनों मे रहा है क्यो की कुछ विद्वान लोग इनके बारे मे अलग बताते है और किओ अलग जेसे की कुछ बताते है की इन का जन्म सोरो शूकरक्षेत्र मे हुआ था, तू कुछ बताते है की इन का  जन्म राजापुर मे हुआ था , कुछ बताते है की की राजपुर जिला जो की अभी चित्र कूट है मे हुआ था, 


अब जिन लोगो को यह नहीं पता की यह चित्रकूट कहा पड़ता है तो आपकी जान करी के लिए बता दु की यह उत्तरप्रदेश मे एक जिला है , इनके पिता जी का नाम का नाम प॰ आत्माराम शुक्ल और इनकी माता जी का नाम हुलसी देवी था  |  गोस्वामी तुलसी दाम जी का जन्म  सवंत 1511 के श्रावण महीने के शुक्ल पक्ष मे सप्तमी तिथि के दिन इन का जन्म हुआ था , कहा जाता है की यह 12 महीनो तक आपकी माँ की कोख मे रहे थे इसलिए जब इंका जन्म हुआ ठो इनके दाँत आ चुके थे , और जन्म के साथ की इन होने राम का नाम लिया , जिस कारण बाद मे इन का नाम रामबोला पढ़ गया |


लेकिन हाल ऐसा के जन्म के दूसरे दिन ही इनकी माँ का निधन हो गया , जो की तुलसीदास के लिए चुनोतीया लेकर आया क्यो की बाद मे फिर लोग इन्हे ताने मारने लगे और अशुभ कहने लगे | और फिर जब रामबोला यानि की तुलसीदास जी 5 साल के हुए तो इन्हे घर से बाहर निकर दिया और उन्हे अनाथों की तरह भटकना पड़ा |


गोस्वामी तुलसीदास जी की शिक्षा -


तुलसीदास जी वेरागी शिक्षा के लिए जाने जाते है , और इसी लिए उन्हे तुलसीदास जी नाम रखा गया , इन का उप नयन नरहरिदास जी ने किया था जो की उनके गुरु  भी थे और वो भो 7 साल की उम्र मे |

इनहोने अपनी पहली शिक्षा अयोध्या से शुरू की , उन्होने अपनी रचना राम चरित मानस मे बताया की की उन्हे गुरु उन्हे बार - बार रामायण सुनाया करते थे , जब वे 15 साल के हुये तो काशी आ गए और वह अपने गुरु से शिक्षा लेने लगे, और वाहा jytish का ज्ञान लिया और फिर अपने गुरु की आज्ञा लेकर वापस अपने गाँव आ गए |फिर पढ़ाई के बाद वे चित्रकूट रहने लगे और वह रामायण सुनाने लगे | 



गोस्वामी तुलसीदास के बचपन के बारे,  मे -

फिर घर से बाहर निकालने जाने के बाद उन्हे अनंतानन्द जी की बेटे नरहरी बाबा ने इन्हे शरण चूंकि उस समय रामबोला बहुत सी विख्यात हो चुके थे तो उन्हे दुंदने मे कोई भी दिक्कत नहीं आई और तुलसीदास जी उनकी शरण के आ गए , फिर इन होने ही इन का नाम कारण किया और इन का नाम तुलसीदास रखा , फिर तुलसीदास जी को अयोध्या ले जाया गया ,  जहा 1561 माघ शुक्ला को इन का संस्कार किया गया |


फिर जो हुआ वह देख सभी लोग ठहरे के ठहरे रह गए क्यो की बाद मे उन्हे बिना सिखाये गायत्री मंत्र का उचारण कर दिखाया जो की काफी बड़ी बात है |जिनसे यह तो पता लग गया की उनकी बुद्धि तेज है फिर गुरु से उन्हे सीखना शुरू किया और नरहरी दास उन्हे जो सिखाते उन्हे आसानी से याद रहा जाता लेकिन बाद मे उन्हे राम कथा सुनाई गयी लेकिन बच्चे होने के कारण उन्हे वे आसानी से नहीं सीख पाये |


फिर ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन सवंत 1583 को  29 साल की उम्र मे राजपुर से थोड़ी ही दूर यमुना से कुछ ही दुरु पर एक गाँव मे भारद्वाज की गोत्र कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ , लेकिन उस समय वे गौना नहीं हुए थे इसलिए वे काशी चले गए थे । इसे पहल इंका एक बेटा भी हुआ था जो की बालक होते होते ही मर गया था |  


और वह दीक्षा लेने लगे , लेकिन एक दीन वाहा अचानक उनकी पत्नी याद आ गयी और वे बहुत चिंतित हो हगे और जब बात हद से ज्याद अहोने लगी तो वे अपने गुरुजी की आज्ञा लेकर वापस राजापुर चले आए , उस समय पत्नी अपने गाँव चले गाय एथे उस समय तुलसी दास जी ने यमुना को रात मे पार किया और सीधे ही अपनी पति की जहा उनकी पत्नी सोई हुई थी वह अहि चले गए । और फिर अकेले रात मे देख कर वर भी बहुत ही भयभीत हो गई , लेकिन जब वे नहीं माने तो उनकी पत्नी ने उन्हे एक दोहे के द्वारा समझाया और उस समय उनका नाम तुलसीराम से तुलसी दास पड़ा | 



तुलसीदास जी को अपनी पत्नी के द्वारा मिला हुआ दोहा -



अस्थि चर्म मय देह यह , ता सों ऐसी प्रीति !

नेकु जो होती राम से , तो काहे भय - भीत ?



और यही सुन कर अपनी पत्नी को उनके पिता के घर छोड़ दिया और खुद अपने गाँव राजपुर चले आए लेकिन वह जाकर उन्हे पता चला की अब उनके पिता नहीं रहे और उनहा परिवा भी नष्ट हो चुका है जो की उनके लीये बहुत ही दुख दाएक चीज थी , और फिर पूरे विद्धि के साथ अपने पिता का श्राद्ध किया और फिर पूरे गाँव मे राम जी की कथा सुनाने लगे |



गोस्वामी तुलसी दास जी की राम जी से भेंट -

कुछ समय राजपुर  मे रहने के बाद वे फिर से काशी चले गए और वह जनता को राम - जी की कथा सुनाने लगे , कथा के दौरान उन्हे मानव के रूप मे एक प्रेत मिला जिसने उन्हे हनुमान जी का पता बतलाया । हनुमान जी के दर्शन करने के बाद उन्होने भगवान राम जी के दर्शन करने की इच्छा  जताई  , तब उन्होने बता या की तुम्हें चित्र कूट मे भगवान के दर्शन होंगे , इसलिए वे चित्र कूट की और चल दिये , चित्र – कूट जाने के बाद उन्होने राम घाट मे अपना आसन जमाया , और एक दिन उन्हे भगवान राम जी के दर्शन हो हो गए । 


उन्होने देखा की दो सुंदर राज कुमार बड़े घोड़े पर धनुष - बाण लेकर काही जा रहे थे , तुलसी दास जी उन्हे ड़ेख कर बहुत खुस हुये लेकर उन्हे पहचान नहीं सके , तब फिर हनुमान जी ने कहा की आपको फिर से भगवान जी के दर्शन होने सुबह सवेरे  ही |


सवंत 1607 की मौनी अमावस्या के दिन भगवान राम जी उनके सामने फिर से प्रकट हुये  | उन्होने बालक रूप मे आकार तुलसीदास जी से कहा की- '' बाबा ! हमे चन्दन चाहिए क्या आप हमे चन्दन दे सकते है ?''तब हनुमान जी ने सोचा की काही वे फिर दे दोखा नहीं खा जाये इसलिए उन्होने दोते का रूप लेकर एक दोहा सुनाया , 



की 


चित्रकूट के घाट पट , भई संतन की भीर | 

तुलसीदास चन्दन घिसे , तिलक देत रघुवीर ||


और जब तुलसी दास जी ने भगवान राम जी को देखा तो खुद ही सद - बुद खो बेठे और फिर भगवान राम जी मे खुद उनके उपर और अपने उपर तिलक लगाया और फिर गाएब हो गए |


गोस्वामी तुलसी दास जी की म्र्त्यु -

लेकिन एक रात जब तुलसीदास जी काशी के मशहूर घाट असीघाट पर सों रहे थे तो एक दिन कलयुग  मूर्त रूप धरण कर उनके पास आया और उन्हे पीड़ा पहुंचाने लगा , तुलसीदास जी ने उसी समय हनुमान जी का ध्यान किया और हनुमान जी खुद  सामने आकर  प्रार्थना के पद रचने को कहा , और उस समय उन्होने एक पत्रिका लिखी और उसी समय भगवान जी के चरणों मे समर्पित हो गए |


भगवान राम जी ने खुद आपण हस्ताक्षर किए और उन्हे निर्भय कर दिया | और फिर श्रावण के क्रषण की त्रटिय के दिन शनिवार को तुलसीदास जी ने राम - राम  कहते हुये अपना शरीर त्याग दिया |


गोस्वामी तुलसीदास जी की रचनाए -

गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने जीवन  मे बहुत सी रचनाए लिखी जो की कालजयी रही जिनके बारे मे आहा बताया जा राजा है -


गीतवाली (1571 ), रामचरित मानस (1574 ), जानकी मंगल (1582), दोहवाली (1583 ), कर्षण - गीतावली 1571 ) , पार्वती - मंगल ( 1582 ) , विनय -पत्रिका (1582 ), रामलालनहछु (1582 ) वेराग्ये संदीपनी (1612), सतसई , बरवै रामायण (1612), कवितावली (1612 ), हनुमान बहुक |  


इनमें से रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, कवितावली, गीतावली जैसी कृतियों के विषय में किसी कवि की यह आर्षवाणी सटीक प्रतीत होती है - पश्य देवस्य काव्यं, न मृणोति न जीर्यति। अर्थात देवपुरुषों का काव्य देखिये जो न मरता न पुराना होता है।



रामचरित मानस तुलसीदास जी का सबसे लोकप्रिय रहा इनहों अपनी रचनाओ मे बहुत जी जांकरिया भी दी है जिन के  प्रमाण आज भी मिलते है , इनके अलावा और भी ग्रंथ -

 छंदावली रामायण , कुण्डलिया रामायण , राम शलाका , संकट मोचन , करखा रामायण , रोला रामायण , झालूना , छप्पय रामायण , कविता रामायण , कालीधर्माधर्म निरूपण , हनुमान चालीसा |



गोस्वामी तुलसीदास जी का वाल्मीकि अवतार -

ऐसा माना जाता है की गोस्वामी तुलसी दास जी वाल्मीकि के अवतार थे हिन्दू शास्त्रो मे बताया है की भगवान राम ने अपनी पत्नी को बताया था की वाल्मीकि कलयुग मे केसे अवतार लेंगे | और ऐसा भी बताया जाता है की हनुमान जी वाल्मीकि जी से रामायण सुनने के लिए तुलसीदास जी के पास जाते थे | रावण पर भगवान राम की जीत के बाद हनुमान हिमालय पर भगवान राम जी की पूजा करते रहे \


तुलसीदास जयंती  के बारे मे 2022 -

तुलसीदास जी का जंन्म के रूप मे  तुलसीदास जयंती मनाई जाती है जो की एक महान हिन्दू संत और कवि थे , इसी के साथ वे एक लेखक भी थे |


तुलसी दास जयंती हल साल हिन्दी केलंडर के अनुसार ' श्रावण '' मे क्रषण पक्ष ( अंधेरे पखवाड़े ) मे सप्तमी को मनाई जाती है |


यानि की तुलसीदास जयंती अगस्त मे मनाई जाती है |

जब तुलसीदास जी ने राम चरित मानस का निर्माण किया तो वह  सिर्फ विद्वानो  से समझ मे आए ऐसी ही थी , और उसे केवल विद्वान ही समझ पाते थे , लेकिन जब यह पूरे विश्व मे फेली तो यह बहुत सी भाषाओ मे फेली जेसे की अवधि , जो की हिन्दी की एक बोली है |



तुलसीदास जयंती मनाने का तरीका -


तुलसीदास जयंती के दिन भगवाग तुलसीदास जी की याद मे मनाया जाता है और वो भी पूरे जोश के साथ यह रामायण को और भी पोपुलर बनाने के लिए औरिस महान लेखक की याद मे मनाया जाता है ,और यह तुलसीदास जी के दोहे को आसान बनाने के लिए और भगवान जी को याद करने के लिए मनाया जाता है , तुलसीदास जयंती के दिन मंदिरो मे रामचरितमानस के पाठ को याद किया जाता है | और उसके दोहे को सरल मनाया जाता है |


इस दिन हनुमान चालीसा को भी याद किया जाता है , और ब्रहमनों को भी भोजन दिया जाता है |



तुलसीदास जयंती का महत्व -


तुलसीदास जी अपने समय के महान कवि थे और उन्हे अच्छे कर्मो के लिए जाना जाता है , इसके अलावा वे कोई साधारण आदमी नहीं थे क्यो की उन्हे भगवाम राम और हनुमान जी के दर्शन हुए थे  और माना जाता है की वे भगवान वाल्मीकि के अवतार थे इसलिए उनकी याद मे तुलसीदास जयंती मनाई जाती है |


तुलसीदास जयंती त्योहार 2022 से 2029 तक–

साल दिनांक

2022 गुरुवार, 4 अगस्त

2023 बुधवार, 23 अगस्त

2024 रविवार, 11 अगस्त

2025 गुरुवार, 31 जुलाई

2026 बुधवार, 19 अगस्त

2027 रविवार, 8 अगस्त

2028 शुक्रवार, 28 जुलाई 

2029 गुरुवार, 16 अगस्त



तुलसीदास जी के दोहे -


जो न तरै भवसागर नर समाज अस पाइ

     सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ।


अर्थ : जो आदमी प्रभु रूपी साधन पाकर भी इस संसार सागर से नहीं पार लगे वह मूर्ख मन्दबुद्धि कृतघ्न है जो आत्महत्या करने बाले का फल प्राप्त करता है।



जो अति आतप ब्याकुल होईं।तरू छाया सुख जानई सोईं


अर्थ : धूप से ब्याकुल आदमी हीं बृक्ष की छाया का सुख जान सकता है।


ग्यानवंत कोटिक महॅ कोउ।जीवन मुक्त सकृत जग सोउ।


अर्थ : शास्त्र का कहना है कि करोड़ों विरक्तों मे कोई एक हीं वास्तविक ज्ञान प्राप्त करता है और करोड़ों ज्ञानियों मे कोई एक ही जीवनमुक्त विरले हीं संसार में पाये जाते हैं।



तिन सहस्त्र महुॅ सब सुख खानी।दुर्लभ ब्रह्म लीन विग्यानी।

धर्मशील विरक्त अरू ग्यानी।जीवन मुक्त ब्रह्म पर ग्यानी।


अर्थ : हजारों जीवनमुक्त लोगों में भी सब सुखों की खान ब्रह्मलीन विज्ञानवान लोग और भी दुर्लभ हैं।धर्मात्मा वैरागी ज्ञानी जीवनमुक्त और ब्रह्मलीन प्राणी तो अत्यंत दुर्लभ होते हैं।



जो न तरै भवसागर नर समाज अस पाइ

     सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ।


अर्थ : जो आदमी प्रभु रूपी साधन पाकर भी इस संसार सागर से नहीं पार लगे वह मूर्ख मन्दबुद्धि कृतघ्न है जो आत्महत्या करने बाले का फल प्राप्त करता है।



सुनहु तात माया कृत गुन अरू दोस अनेक

     गुन यह उभय न देखि अहि देखिअ सो अविवेक।


अर्थ : हे भाई -माया के कारण हीं इस लोक में सब गुण अवगुण के दोस हैं।असल में ये कुछ भी नही होते हैं।इनको देखना हीं नहीं चाहिये।इन्हें समझना हीं अविवेक है।



एहि तन कर फल विसय न भाई।स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई।

     नर तन पाई विशयॅ मन देही।पलटि सुधा ते सठ विस लेहीं।


अर्थ : यह शरीर सांसारिक विसय भोगों के लिये नहीं मिला है। स्वर्ग का भोग भी कम है तथा अन्ततः दुख देने बाला है। जो आदमी सांसारिक भोग में मन लगाता है वे मूर्ख अमृत के बदले जहर ले रहे हैं।






तुलसीदास जी के बारे मे कुछ रोचक -



समापन -


 तो दोस्ती आशा करता हु की आपको तुलसीदास जी की जीवनी के बारे मे जानकार अच्छा लगा होगा क्यो की यह बड़े कवि और आदमी थे तो इनके बारे मे हमे जाना न चाहिए अगर आपको यह बायोग्राफ़ि अच्छी लगी हो तो कमेंट कर जरूर बताना मिलते है अगले ब्लॉग मे किसी नए टॉपिक के साथ |



इन्हे भी देखे -



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